The story has to have some kind of message and it has to be inspiring as well otherwise it would be meaningless. So in this article, we are going to list out some moral stories. Enjoy them or share them with kids or anyone else to inspire them.
MORAL STORIES IN HINDI
बहादुर कलहंस
बहुत पहले, रोम के शासकों को अपनी ताकत पर जरूरत से ज्यादा भरोसा हो गया था। तभी गाउल्स कहलाने वाले डाकुओं ने उन पर हमला कर दिया।एक बहादुर सिपाही केपीटोल(जुपिटर के मंदिर) के पीछे खजाने की रक्षा कर रहे थे। गाउल्स ने खड़ी चट्टानों पर चढ़ने की बहुत कोशिश की परंतु असफल हुए। बाद में उनको केपीटोल का गुप्त रास्ता पता चल गया।उन्होंने रात में हमले की योजना बनाई। अंधेरे में रोमन सिपाहियों को गर्ल्स के आने का पता नहीं चला, लेकिन वहाँ रोमन भगवान को बली देने के लिए कलहंस रखी हुई थीं।कलहंसों ने दुश्मनों को देखा तो ज़ोर से शोर करने लगीं। उनके शोर ने रोमनवासियों को जगा दिया। वे बहादुरी से गाउल्स के साथ लड़ने लगे। रोमन सेना भी वहाँ आ पहुँची और दुश्मनों को मार भगाया गया।रोमन शासक कलहसो से बहुत खुश हुए। उन्होंने फैसला किया कि आगे से उनकी बली नहीं दी जाएगी। उस फैसले को आज भी माना जाता है।
चालाक गधा
एक दिन एक शेर अपनी प्यास बुझाने के लिए नदी के तट पर गया। वहाँ नदी के दूसरे तट पर एक गधा भी पानी पी रहा था। गधे को देखकर शेन ने उसे अपना भोजन बनाने के लिए एक योजना बनाई।शेर बोला, “प्यारे गधे, क्या नदी के उस किनारे कोई घोड़ा भी है? मेरी इच्छा उसका गाना सुनने की है।” गधे को उसकी नीयत पर तनिक भी संदेह नहीं है। वह बोला.”श्रीमान क्या घोड़ा ही गा सकता है, मैं नहीं?लीजिए मेरा गाना सुनिए।” यह कहकर उसने अपनी आँखें बंद की और जोर-जोर से रेंकना शुरू कर दिया। मौका पाकर शेर ने नदी पार की और गधे को पकड़ लिया। गधा भी चालाक था।वह बोला, “श्रीमान् ! मैं आपका भोजन बनने के लिए तैयार हूँ। लेकिन मैंने सुना है कि ताकतवर एवं बलशाली शेर अपना भोजन करने से पहले भगवान की प्रार्थना करते हैं।” शेर अपने को जंगल का सबसे शक्तिशाली जानवर मानता था।इसलिए उसने प्रार्थना करने के लिए अपनी आँखें बंद कर ली। अब गधे को भागने का अच्छा मौका मिल गया। वह वहाँ से तेजी से भाग निकला। इस तरह चालाकी में वह गधा शेर पर भारी पड़ा।
कड़वा सच
जंगल के राजा शेर के जन्मदिन के अवसर पर सभी पशु-पक्षी आमंत्रित शेर की माँद में एक विशाल भोज की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं। सभी पशु-पक्षी सज-धजकर नियत समय पर समारोह में पहुँचे।समारोह में गधे को छोड़कर सभी पशु-पक्षी आए थे। शेर ने केक काटा और सभी ने जन्मदिन का गीत गाया। उसके बाद सभी ने भोज का आनंद लिया। शेर को गधे के आने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन वह नहीं आया। तब शेर ने सोचा।‘हो न हो, किसी जरूरी कार्य की वजह से गधा नहीं आ पाया होगा।’ अगले दिन जब शेर गधे से मिला तो उसने गधे से इस विषय में पूछा। गधा बोला, “मुझे समारोह आदि में जाने से नफरत है।मुझे घर पर रहकर आराम करना ही अधिक पंसद है।” गधे ने शेर से सत्य ही कहा था, जो कि कड़वा था। गधे की बात सुनकर शेर को बहुत गुस्सा आया और उसने गधे को जंगल से निष्कासित कर दिया।तभी से गधा आदमी के साथ रह रहा है और उसका बोझ उठाने को विवश है। उसकी यह दशा एक कड़वा सच कहने के कारण हुई। किसी ने ठीक ही कहा है कि सच हमेशा कड़वा होता है।
बुद्धिमान किसान
एक दिन एक किसान मेले से अपने घर लौट रहा था। उसने मेले से एक भैंस ने खरीदी थी। जब वह घने जंगल से होकर गुजर रहा था, एक डाकू उसका रास्ता रोक लिया। उसके हाथ में एक मोटा-सा डंडा था।वह बोला, “तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वह सब मुझे दे दो।” । किसान डर गया। उसने अपने सारे पैसे डाकू को दे दिए। तब डाकू बोला, “अब मुझे तुम्हारी भैंस भी चाहिए।” यह सुनकर किसान ने भैंस की रस्सी भी भी डाकू के हाथ में दे दी।फिर किसान बोला, “मेरे पास जो कुछ भी था, मैंने सब तुम्हें दे दिया। कृपा करके आप मुझे अपना डंडा दे दीजिए।” डाकू ने पूछा, ” लेकिन तुम्हें इसकी क्या आवश्यकता है?” वह बोला, “मैं यह डंडा अपनी पत्नी को दूंगा ।यह डंडा देखकर वह बड़ी खुश होगी कि मैं मेले से उसके लिए कुछ तो लाया हूँ।” डाकू ने डंडा किसान को दे दिया। किसान ने बिना वक्त गंवाए डाकू को जोर-जोर से मारना शुरू कर दिया।डाकू पैसे और भैंस छोड़कर वहाँ से भाग खड़ा हुआ। इस तरह से बुद्धिमान किसान ने अपना सामान डाकू से बचा लिया।
सपना सच हुआ
बिटू बहुत गरीब था। एक दिन वह रामलाल की दुकान पर गया। रामलाल ने उससे पूछा, “तुम यहाँ क्यों खड़े हो?”. बिट्टू ने जवाब दिया,”मैंने पिछली रात एक सपना देखा। सपने में मैंने देखा कि तुम्हारी दुकान के आगे मुझे सोना मिला है।”उसकी बात सुनकर रामलाल हँसने लगा। वह हँसकर बोला, “तुम बड़े ही बेवकूफ हो। सपने कभी सच नहीं होते। चलो मैं भी तुम्हें अपने सपने के बारे में बताता हूँ। मैंने भी देखा कि तुम्हारे घर के आँगन के नीचे सोना है।”बिट्टू ने रामलाल के सपने को गम्भीरतापूर्वक लिया और वह वापस घर की ओर चल पड़ा। घर पहुँचकर उसने अपना आँगन खोदना शुरू किया। काम खोदने के बाद उसे मिट्टी के अन्दर एक घड़ा नजर आया। उसने वह घड़ा निकाला।वह सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। बिटू मन-ही-मन बोला, ‘धन्यवाद रामलाल, कभी कभी सपने भी सच हो जाते हैं। आज तुम्हारे सपने की वजह से मैं एक धनी आदमी बन गया हूँ।
सुनहरी चिड़िया
एक जंगल में एक सुनहरी चिड़िया रहती थी। वह मीठे गीत गाया करती थी। जब वह गाना गाती तो उसकी चोंच से चमकदार मोती गिरते। एक दिन एक बहेलिए ने उसे पकड़ लिया।उसने उसे अपने घर ले जाकर एक सोने के पिंजरे में रख दिया। वह उसे अच्छा खाना देता, लेकिन चिड़िया दुखी रहती। वह आजादी का आनंद लेना चाहती थी। अब वह पिंजरे में गाना भी नहीं गाती थी।इस वजह से बहेलिए को एक भी मोती नहीं मिल पा रहा था। तंग आकर बहेलिए ने उस सुनहरी चिड़िया को राजा को उपहार स्वरूप भेंट कर दी। राजा ने वह चिड़िया राजकुमारी को दे दी।राजकुमारी एक अच्छी लड़की थी। वह बहुत दयालु थी। उसने सुनहरी चिड़िया को आजाद कर दिया। चिड़िया अपनी आजादी से बहुत खुश थी, इसलिए वह पुन: गाने लगी।फलस्वरूप उसकी चोंच से राजकुमारी के कमरे में मोती गिरने लगे। उस दिन से वह सुनहरी चिड़िया रोज राजकुमारी से मिलने आती और उसके लिए गाना गाती। वह जैसे ही गाना गाती वैसे ही उसकी चोंच से मोती झडते। यह उसकी तरफ से प्यारी राजकुमारी के लिए तोहफा था।
बुद्धिमान यात्री
एक यात्री घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहा था। एक जंगल को पार कर समय उसे थकान महसूस होने लगी। इसलिए वह घोड़े से नीचे उतरा एक छायादार वृक्ष के नीचे लेट गया।जल्दी ही उसे नींद आ गई। उसका घोड़ा वहीं पास में चरने लगा। कुछ घंटों बाद यात्री उठा तो उसने देखा कि उसका घोड़ा गायब है। उसने उसे वहाँ चारों तरफ ढूँढा, लेकिन उसे घोड़ा नहीं मिला।तब उसने अपना मोटा डंडा उठाया और घोड़ा चोर को ढूँढने लगा। घोड़े को ढूँढते-ढूँढते वह नजदीक के गाँव में पहुँच गया। वहाँ पर उसने अपना डंडा घुमाते हुए चिल्लाकर कहा, “मेरा घोड़ा किसने चुराया है?जिसने भी ये कार्य किया है वह मेरा घोड़ा लौटा दे, अन्यथा मैं वही करूँगा, जो मैंने पिछली बार किया था।” चोर उसी गाँव का था। उसकी बात सुनकर चोर डर गया और वह तुरंत घोडे को ले आया।फिर वह यात्री के सामने हाथ जोड़कर बोला, “मुझे माफ कर दो। ये रहा तुम्हारा घोड़ा। लेकिन ये तो बताओ कि जब पिछली बार तुम्हारा घोड़ा चोरी हुआ था,तब तुमने क्या किया था?” बुद्धिमान यात्री बोला, “कुछ भी नहीं! मैंने नया घोड़ा खरीद लिया था।” ये कहकर वह जोर जोर से हँसने लगा।
राजा विक्रमादित्य
विक्रमादित्य एक महान राजा थे। वे अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। एक दिन वे नदी के तट पर घूमने गये। उन्हें वह स्थान बहुत अच्छा लगा। इसलिए उन्होंने अपने प्रधानमंत्री को वहाँ पर एक सुंदर महल बनाने का आदेश दिया।राजा का आदेश पाकर प्रधानमंत्री उस स्थान का निरीक्षण करने के लिए वहाँ गए। लेकिन जल्दी ही वह वहाँ से वापस आ गए और राजा विक्रमादित्य से बोले,”महाराज, जहाँ पर महल बनना है, ठीक वहीं पर एक बूढ़ी औरत की झोंपड़ी है।इससे महल की सुंदरता खंडित होगी।” । राजा विक्रमादित्य ने बुढ़िया को दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया। अगले दिन वह बूढ़ी औरत राजा से मिलने आई।राजा विक्रमादित्य ने उससे अपनी झोंपड़ी छोड़ने के बदले धन देने की पेशकश की तो वह बोली, “मैं अपनी झोंपड़ी नहीं छोड़ेंगे। वह मेरे स्वर्गीय पति की निशानी है। कोई भी मुझे उस झोंपड़ी से अलग नहीं कर सकता।”।उस वृद्धा औरत का यह उत्तर सुनकर राजा को उसकी भावनाओं का अहसास हुआ और उन्होंने वहाँ पर महल बनवाने का इरादा त्याग दिया। सभी लोगों ने विक्रमादित्य के इस आदेश की प्रशंसा की।
बुद्धिमान गंगा
महेश एक जुआरी था। उसकी जुआ खेलने की आदत से उसकी पत्नी गंगा । में बड़ी परेशान थी। एक दिन महेश जुए सोनू से बहुत सारा पैसा हार गया। सोनू ने उससे पैसा माँगा। लेकिन महेश के पास उसे देने के लिए पैसे नहीं थे।तब सोनू बोला, “कल मैं तुम्हारे घर आऊँगा और जिस भी वस्तु पर सबसे पहले मेरा हाथ पड़ेगा, वह मेरी हो जाएगी।” महेश अपने घर गया और सारी बात अपनी पत्नी को कह सुनाई। वह बोली.“मैं तुम्हारी मदद सिर्फ इस शर्त पर करूंगी, कि तुम अब कभी जुआ नहीं खेलोगे। मुझसे इस बात का वादा करो।” महेश ने जुआ छोड़ने का वादा कर लिया। गंगा ने सारा कीमती सामान एक संदूक में भरकर संदूक को ऊँचाई पर रख दिया।अगले दिन सोनू उनके घर आया। वह जानता था कि सारा सामान एक सदूक में रखा है। वह उस तक पहुँचने के लिए वहाँ लगी सीढ़ी से चढ़ने लगा। उसने जैसे ही सीढ़ी को छुआ,गंगा बोली, “रुको! तुम्हारे कहे अनुसार ये सीढ़ी तुम्हारी हुई, क्योंकि तुमने सबसे पहले इसे ही छुआ है।” बेचारा सोनू दुखी मन से वहाँ से चला गया।
शरणागत की उपेक्षा का फल
किसी नगर में चित्ररय नाम का एक राजा रहता था। उसके राज्य में पद्मसर नाम का एक सरोवर या, जिसकी सुरक्षा राजा के कर्मचारी किया करते थे। उस वा में स्वर्णपखी हंस निवास करते थे।वे हंस छ: छः माह के उपरांत अपने स्वर्ण पंख सरोवर में गिराते रहते थे। राजा के कर्मचारी उन पंखों को एकत्रित कर राजा को सौंप देते थे। एक दिन वहा एक बहुत बड़ा स्वर्ण पक्षी आ गया।हंसों ने उस पक्षी से कहा- तुम इस सरोवर में मत रहो। हम इस सरोवर में मुल्य देकर रहते है। हम प्रति छः महीने बाद राजा को अपने स्वर्ण पंख देकर इसका मूल्य चुकाते हैं। हमने यह तालाब किराए पर ले रखा है।’किंतु उस पक्षी ने उनकी बातों पर ध्यान न दिया इस प्रकार परस्पर दोनों के बीच विवाद पैदा हो गया। विवाद ज्यादा बढ़ गया तो वह पक्षी राजा की शरण में पहुंचा और उसके उल्टे-सीधे कान भरने लगा।उसने राजा से शिकायत की कि हंस उसको वहां ठहरने नहीं दे रहे हैं। वे कहते हैं कि सरोवर उन्होंने खरीद लिया है। राजा उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। उन्होंने आपके प्रति अपशब्द भी कहे। मैंने उन्हें मना किया, तब भी वे नहीं माने।इसी कारण मैं आपकी शरण में आया हूं। राजा कानों का कच्चा या। उसने पक्षी की बात को सत्य मानकर तालाब के स्वर्ण हंसों को मारने के लिए अपने कर्मचारियों को भेज दिया।हंसों ने जब राज कर्मचारियों को लाठियां लेकर अपनी ओर आते देखा तो वे सब समझ गए कि अब इस स्थान पर रहना उचित नहीं है। अपने वृद्ध नेता की सलाह पर वे उसी समय जलाशय से उड़ गए।हरिदत्त ने अपने स्वजनों को यह कया सुनाने के बाद फिर से उस क्षेत्रपाल सर्प को प्रसन्न करने का प्रयास किया दूसरे दिन वह पहले की तरह दूध लेकर सर्प की बांबी पर पहुंचा और सर्प की स्तुति की।सर्प बहुत देर की प्रतीक्षा के बाद अपने बिल से थोड़ा बाहर निकला और उस ब्राह्मण से बोला-‘ब्राह्मण ! अब तू पूजाभाव प्रेम नहीं हो सकता। तेरे पुत्र ने लोभवश मुझे मारना चाहा, किंतु मैंने उसे डस लिया।अब न तो तू अपने पुत्र के वियोग को ही भूल सकता है और न ही मैं तेरे पुत्र द्वारा स्वयं पर किए गए उसके लाठी के प्रहार को भुला सकता हूं।’से नहीं, लोभ के वशीभूत होकर यहां आया है अब तेरा-मेरा यह कहकर वह सर्प ब्राह्मण को एक बहुत बड़ा हीरा देकर अपने बिल में घुस गया और जाते-जाते कह गया कि अब से कभी इघर आने का कष्ट न करना।ब्राह्मण उस हीरे को लेकर पश्चात्ताप करता हुआ अपने घर लौट आया। यह कथा सुनाकर रक्ताक्ष ने कहा-‘महाराज! इसलिए मैं कहता हूं कि मित्रता एक बार टूट जाने पर कृत्रिम स्नेह से जुड़ा नहीं करती।अतः शत्रु के इस मंत्री को समाप्त कर अपना साम्राज्य निष्कंटक कर लीजिए।’ रक्ताक्ष की बात सुन लेने के बाद उल्लूराज ने अपने दूसरे मंत्री क्रूराक्ष से पूछा तो उसने परामर्श दिया-‘देव ! मैं समझता हूं कि शरणागत का वध नहीं किया जाना चाहिए। एक कबूतर ने तो अपना मांस देकर भी अपने शरणागत की रक्षा की थी।’
घमंडी गधा
एक दिन एक जौहरी एवं एक लौह व्यापारी अपने-अपने गधों पर सवा होकर कहीं जा रहे थे। जौहरी के गधे की पीठ पर रेशम का कपड़ा था और वह स्वर्ण मुद्राओं एवं कीमती जवाहरातों से भरे हुए दो थैले ढो रहा था।वहीं लौह व्यापारी का गधा साधारण था। वह कुछ लोहे की छड़ें ढो रहा था। जौहरी के गधे को अपनी पीठ पर कीमती सामान होने के कारण घमंड हो गया। उसकी घमंड पूर्ण बातें दूसरा गधा सुन रहा था। दुर्भाग्य से,जब वे एक जंगल से गुजर रहे थे, डाकुओं के एक गिरोह ने उन्हें रोक लिया। डाकुओं को देखकर जौहरी एवं व्यापारी अपने-अपने गधों को छोड़कर भाग खड़े हुए। डाकू सामान को देखने लगे।उन्हें लौह व्यापारी के गधे की पीठ पर रखे सामान में कुछ भी कीमती सामान नहीं मिला। इसलिए उन्होंने उसे छोड़ दिया। जौहरी के घमंडी गधे की पीठ पर कीमती सामान देखकर वे उस पर लदे थैलों से सामान निकालने लगे।जब गधा जरा-सा भी विरोध करता, है उसे खूब जोर-जोर से मारते। इस प्रकार उस घमंडी गधे को सबक मिल गया कि घमंड करना ठीक नहीं है। घमंडी लोगों को हमेशा नीचा देखना पड़ता है।
ठग और ब्राह्मण
किसी स्थान पर मित्र शर्मा नाम का एक कर्मकांडी ब्राह्मण रहता था। एक दिन दूर के एक गांव में जाकर वह अपने यजमान से बोला-‘यजमान जी ! मैं अगली अमावस्या के दिन यज्ञ कर रहा हूँ ।उसके लिए कोई हट-पुष्ट पशु दे दो। यजमान ने उसे एक मोटा-ताजा बकरी का बच्चा दे दिया। रास्ते में बकरी का बच्चा ब्राह्मण को कुछ परेशान करने लगा तो उसने उसे कंधे पर लाद लिया। आगे चलकर रास्ते में उसे तीन घूर्त मिले।तीनों भूख से व्याकुल थे। वे सोचने लगे कि क्यों न इस ब्राह्मण से यह बकरी का बच्चा हथियाकर आज इसी से अपनी भूख मिटाई जाए। यह विचार आते ही उनमें से एक धूर्त वेश बदलकर किसी अन्य मार्ग से आग जाकर ब्राह्मण के रास्ते में बैठ गया। जब ब्राह्मण वहां से गुजरने लगा तो उस घूर्त ने उससे कहा-‘पंडित जी,यह क्या अनर्थ कर रहे हो ? ब्राह्मण होकर एक कुत्ते को कंधे पर बिठाए ले जा रहे हो।’ ब्राह्मण बोला-‘अंधे हो क्या, जो बकरे को कुत्ता बता रहे हो?’ ‘मुझ पर क्रोध क्यों करते हो, विप्रवर। यह कुत्ता नहीं बकरा है तो ले जाइए अपने कंधे पर।मुझे क्या ? मैंने तो ब्राह्मण जानकर आपका धर्म भ्रष्ट न हो जाए, इसलिए बता दिया। अब आप जाने और आपका काम ।’ कुछ दूर जाने पर ब्राह्मण को दूसरा धूर्त मिल गया। वह ब्राह्मण से बोला-‘ब्राह्मण देवता, ऐसा अनर्थ किसलिए?इस मरे हुए बछड़े को कंधे पर लादकर ले जाने की क्या आवश्यकता पड़ गई ? मृत पशु को छूना तो शास्त्रों में भी निषेध माना गया है। उसको छूने के बाद तो किसी पवित्र सरोवर अथवा नदी में जाकर स्नान करना पड़ता है।’ब्राह्मण कुछ और आगे पहुंचा तो तीसरा धूर्त सामने आ गया। बोला-‘अरे महाराज! यह तो बहुत अनुचित कार्य आप कर रहे हैं कि एक गधे को कंधे पर रखकर ढो रहे हैं। इससे पहले कि कोई और आपको देख ले, उतार दीजिए इसे कंधों से।’तीन स्थानों पर, तीन व्यक्तियों के द्वारा बकरे के लिए अलग अलग नामों के सम्बोधन सुन ब्राह्मण को भी संशय हो गया कि यह बकरा नहीं है।उसने बकरे को भूमि पर पटक दिया और अपना पल्ला झाड़कर अपने रास्ते पर चला गया। उसके जाने के बाद तीनों धूर्त वहां इकट्ठे हुए और बकरी के बच्चे को उठाकर चले गए।
हरा सोना
निशा एक गरीब लड़की थी। वह भीख माँगकर अपना गुजारा करती थी। एक दिन एक औरत ने उसे भीख के बदले फूलों के कुछ पौधे एवं बीज देते हुए कहा,“तुम इन पौधों और बीजों को घर के आँगन में बोना तो तुम्हें कभी भीख नहीं माँगनी पड़ेगी।” निशा की समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन उसने औरत के कथनानुसार उन पौधों एवं बीजों को अपने घर के आँगन में बो दिया।साथ ही उसने उन पौधों की अच्छी तरह देखभाल शुरू कर दी। वह प्रतिदिन उन्हें पानी देती। कुछ हफ्ते बाद उसके घर के चारों ओर सुंदर-सुंदर फूल खिल गए।एक दिन एक महिला ने उन फूलों को देखा और वह उन्हें खरीदने के लिए निशा के पास आई। निशा ने कुछ फूल तोड़े और उस महिला को बेच दिए। अब निशा घर-घर जाकर भी फूल बेचने लगी।इस तरह उसका जीवन सुधरने लगा और उसने भीख माँगना छोड़ दिया। जल्दी ही कुछ लोग उसके नियमित ग्राहक बन गए। उसने कुछ पैसे बचाकर बाजार में फूलों की एक छोटी-सी दुकान खोली।वहाँ पर काफी सारे लोग फूल खरीदने के लिए आते थे। निशा अपनी तरक्की के लिए उस दयालु औरत का मन-ही-मन धन्यवाद कर रही थी जिसने उसे हरा सोना दिया था।
बारहसिंगा की भूल
एक जंगल में एक बारहसिंगा रहता था। उसे अपने खूबसूरत सींगों पर बहुत घमंड था। जब भी वह पानी पीते हुए नदी में अपनी परछाई देखता तो सोचता, ‘मेरे सींग कितने सुंदर हैं, पर मेरी टांगें कितनी पतली और भद्दी हैं।’।एक दिन उस जंगल में कुछ शिकारी आए। उन्होंने जब सुंदर सींगों वाले बारहसिंघा को देखा तो वे उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़े। बारहसिंगा बहुत तेजी से दौड़ता हुआ शिकारियों से काफी दूर निकल गया।तभी अचानक उसके सींग एक पेड़ की शाखा में अटक गए। बारहसिंगा अपने सींग छुड़ाने की भरसक कोशिश कर रहा था, पर सींग थे कि निकल ही नहीं रहे थे। उधर शिकारी लगातार पास आते जा रहे थे।बड़ी मुश्किल से उसने सींग छुड़ाए और वहाँ से जान बचाकर भागा। सुरक्षित स्थान पर पहुँचकर वह सोचने लगा, ‘मैं भी कितना बड़ा मूर्ख हूँ। जिन सींगों की सुंदरता पर मैं इतना घमंड करता था,आज उनकी वजह से मैं भारी संकट में फँस गया था और जिन टांगों को मैं बदसूरत कहकर कोसा करता था उन्हीं टांगों ने आज मेरी जान बचाई है।
स्वार्थी बकरी
एक दिन एक बैल के पीछे एक शेर पड़ गया। काफी देर तक बैल भागता रहा और अंतत: उसे एक गुफा दिखाई दी। वह झट से गुफा में घुस गया। गुफा में एक बकरी रहती थी।उसने बैल को गुफा से बाहर निकलने का आदेश दिया और सींगों से उसे बाहर की ओर धकेलने लगी। बैल बोला, “एक शेर मेरा पीछा कर रहा है और मैंने उससे बचने के लिए यहाँ शरण ली है।जैसे ही वह निकल जाएगा, मैं भी यहाँ से चला जाऊंगा।” बकरी ने उसकी एक नहीं सुनी और उसे सींग मारते हुए बोली, “मैं कुछ नहीं जानती, बस तुम यहाँ से निकल जाओ।”बैल जब बकरी को समझाते-समझाते थक गया तो बोला, “मैं तुम्हारी बदतमीजी सहन कर रहा हूँ तो यह मत समझना कि मैं तुमसे डरता हूँ। इस शेर को यहाँ से निकल जाने दो, उसके बाद तुम्हें बताऊंगा कि मैं कितना बड़ा और ताकतवर हूँ।”
टूटा सींग
एक दिन शाम को चारागाह से घर लौटने के लिए चरवाहे ने अपनी बकरियों को आवाज लगाकर इकट्ठा किया। सभी बकरियाँ लौट आईं, बस एक बकरी चरवाहे की आवाज को अनसुना करके मस्ती से घास चरती रही।यह देखकर उसे बहुत गुस्सा आया और उसने गुस्से में एक पत्थर उठाकर बकरी पर दे मारा। पत्थर बकरी के सींग पर लगा और सींग टूट गया। यह देखकर चरवाहा बुरी तरह डर गया और बकरी के आगे गिड़गिड़ाने लगा,“मेरी अच्छी बकरी! तुम मालिक को मत बताना कि मैंने पत्थर मारकर तुम्हारा सींग तोड़ा है। वरना वह मुझे नौकरी से निकाल देगा।” बकरी बोली, “ठीक है, मैं मालिक से कुछ नहीं कहूंगी।” पर वह मन ही मन सोच रही थी,‘मैं मालिक से इसकी शिकायत नहीं करूंगी, पर भला टूटा सींग कैसे छिपा सकती हूँ। वह तो दिखेगा ही।’ चरवाहा जब बकरियाँ लेकर घर पहुचा तो बकरी का टूटा सींग मालिक की नजर में पड़ गया और गुस्से में आकर उसने चरवाहे को तुरंत नौकरी से निकाल दिया।
कोयल और चिड़िया
एक खेत के किनारे एक विशाल वृक्ष था। उसकी एक शाखा पर एक कोयल ने अपना घोंसला बनाया हुआ था। वहाँ पर उसे और उसके बच्चों को आँधी बरसात और सर्दी-गर्मी झेलनी पड़ती थी।एक छोटी चिड़िया उसे मौसम की मार सहते देखती तो उसे उस पर बड़ी दया आती। एक दिन छोटी चिड़िया उससे बोली,”बहन! मैं हमेशा तुम्हें मौसम की मार झेलते हुए देखती हूँ और मुझे तुम पर बड़ी दया आती है।मैं तो आराम से लोगों के घरों के अंदर अपना घोंसला बनाकर रहती हूँ। वहाँ पर मुझे सर्दी-गर्मी और बरसात आदि की मार नहीं झेलनी पड़ती।तुम्हें भी ऐसा ही करना चाहिए।” इस पर कोयल बोली, “यदि मैंने लोगों के घरों में अपना घोंसला बनाया तो लोग मुझे और मेरे बच्चों को मारकर खा जायेंगे। मैं कभी भी वहाँ पर रहने के बारे में नहीं सोच सकती।”(In Hindi Moral Story With Pictures) शिक्षा : थोड़े से सुख के लिए जान जोखिम में डालना बुद्धिमानी नहीं है।
कंटीली झड़बेरी
एक लोमड़ी ने एक खेत में पके हुए सीताफल देखे। उसने खेत के चारों ओर चक्कर लगाकर घुसने का रास्ता खोजा, परंतु इसके चारों ओर बाड़ लगी हुई थी। इसलिए अंदर जाने के लिए उसे बाड़ को लांघना था।वह जैसे ही उसे लांघने लगी, उसका संतुलन बिगड़ गया और वह झड़बेरी के काँटेदार पौधों में जा गिरी। उसके हाथ-पैरों से खून निकलने लगा। वह गुस्से से झड़बेरी के पौधों पर चिल्लाने लगी, “देखो! यह तुमने क्या किया है।तुम्हारे काँटे चुभने के कारण मेरे हाथ-पैरों से खून निकलने लगा है और मैं दर्द से छटपटा रही हूँ।” झड़बेरी के पौधे बोले,”तुम अकेली हो जो हमारी वजह से घायल हुई हो।सभी लोग जानते हैं कि झड़बेरी काँटेदार पौधा होता है। इसलिए अपनी लापरवाही का आरोप हम पर मत लगाओ।हमारी इसमें कोई गलती नहीं है।”(Moral Story For Kids In Hindi With Pictures) शिक्षा: लापरवाही से ही दुर्घटना होती है।Related:-
बंदर राजा
एक बार जंगल में राजा चुने जाने के लिए चुनाव हुए। चुनाव के लिए सभी जानवरों ने अपनी-अपनी प्रतिभा दिखाई और अंत में बंदर का नाच सब जानवरों को पसंद आया।अब सबने एकमत से फैसला करके बंदर को ही अपना राजा घोषित कर दिया। लेकिन लोमड़ी को बंदर का राजा बनना अच्छा नहीं लगा, इसलिए वह उसे नीचा दिखाने के लिए मौका तलाशने लगी।एक दिन उसे यह मौका मिल ही गया। उसने जंगल में किसी शिकारी द्वारा छोड़ा गया फंदा देखा। गोल किए हुए फंदे में थोड़ी-सी खाने की वस्तुएँ रखी थीं।लोमड़ी बंदर से बोली, “राजन्! मैंने आपको भेंट करने के लिए कुछ खाने की चीजें रखी हैं।आप इन्हें खाएंगे तो मुझे खुशी होगी।” बंदर ने जैसे ही खाने की चीजें देखीं, वह तुरंत उनकी ओर झपटा और फंदे में फँस गया।लोमड़ी ने सभी जानवरों को बुलाकर फंदे में फँसा बंदर दिखाते हुए कहा, “यह बंदर जब अपनी रक्षा नहीं कर सकता तो हमारी रक्षा कैसे करेगा? यह राजा बनने के योग्य नहीं है।”(Moral Story In Hindi With Pictures) शिक्षा : हमें हर काम अपने विवेक से करना चाहिए।
समझदार जुलाहा
एक जुलाहा था। एक कोयले का व्यापारी उसके पड़ोस में ही रहता था। जुलाहा अपनी छोटी-सी झोपड़ी में रहकर कपड़ा बुनता था। जबकि कोयले का व्यापारी नजदीक ही एक काफी बड़े कमरे में रहकर कोयले का व्यापार करता था।एक दिन कोयले के व्यापारी ने जुलाहे से कहा, “तुम इतने छोटे-से कमरे में रहते हो। चाहो तो मेरे कमरे में आकर रह सकते हो। तुम्हें मुझे किराया भी नहीं देना पड़ेगा और रहने को अच्छी व खुली जगह भी मिल जाएगी।”जुलाहे ने बड़ी नम्रता से कहा,”श्रीमान्! आपने मेरी मदद करनी चाही, इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! पर मैं आपके साथ नहीं रह सकता,क्योंकि हम दोनों का काम बिल्कुल अलग है। आपके कमरे में मेरी रूई और कपड़े कोयले के कालेपन से मैले हो जाएंगे, इसलिए मैं अपनी झोंपड़ी में ही खुश हूँ।”(Friendship Moral Story In Hindi With Picture) शिक्षा: मित्रता सोच-समझकर ही करनी चाहिए।
आदमी और शेर
एक आदमी और एक शेर में गहरी दोस्ती थी। वे प्राय: हर रोज मिलते और साथ ही घूमते-फिरते। एक दिन वे दोनों गपशप करते हुए एक नगर में जा पहुंचे।वहाँ उन्होंने एक मूर्ति देखी, जिसमें आदमी ने शेर को दबोचा हुआ था। उसे देखकर दोनों इस बात पर चर्चा करने लगे कि आदमी और शेर में कौन ज्यादा ताकतवर है?शेर कह रहा था कि वह ज्यादा ताकतवर है और आदमी अपने को ज्यादा ताकतवर बता रहा था। आदमी ने मूर्ति की ओर इशारा करके कहा, “देखो!उस मूर्ति से भी यही सिद्ध होता है कि आदमी ज्यादा ताकतवर है।” यह सुनकर शेर मुस्कुराकर बोला, “यदि शेर मूर्ति बनाना जानते तो आदमी शेर के पंजों के नीचे होता।”शिक्षा: हमें व्यर्थ की बहस नहीं करनी चाहिए।
चूहा और बिल्ली
एक घर में बहुत चूहे हो गए थे। वे घर का कीमती सामान कुतर देते थे। घर का मालिक इन चूहों से परेशान होकर एक बिल्ली ले आया। बिल्ली उस घर में आकर बहुत खुश थी, क्योंकि मालकिन उसे सुबह-शाम कटोरा भर दूध देती।बिल्ली दिनभर चूहों को मारती और उन्हें खा जाती। इस तरह मालिक तो खुश था ही, उसके दिन भी खूब मौज-मस्ती में बीत रहे थे। लेकिन घर में बिल्ली के आने से चूहे काफी परेशान थे।पहले तो वे निडर होकर जहाँ-तहाँ घूमते थे, पर अब उन्हें सावधान रहना पड़ता था। बिल्ली के डर से वे सारा दिन अपने बिल में घुसे रहते थे।इससे बिल्ली काफी परेशान थी। एक दिन जब बिल्ली के हाथ एक भी चूहा नहीं लगा तो वह लकड़ी के एक तख्ते पर बेसुध होकर लेट गई। उसने सोचा कि चूहे उसे मरा हुआ समझकर उसके पास आएंगे और वह उन्हें पकड़ लेगी।पर चूहे बिल्ली की चाल समझ गए और बिल में ही छिपे रहे। शाम को एक चूहा बाहर निकलकर बोला, “बिल्ली मौसी! हम जानते हैं कि तुम नाटक कर रही हो इसलिए हम तुम्हारे पास नहीं आएंगे।” मायूस होकर बिल्ली स्वयं ही वहाँ से उठ गई।शिक्षा: खतरे को दूर से भाँप लेना ही अक्लमंदी है।
मूर्ख ज्योतिषी
एक शहर में एक ज्योतिषी रहता था। वह हर समय आकाश में स्थित ग्रह-नक्षत्रों की चाल देखता रहता था और फिर उनकी गणना में उलझा रहता।एक अंधेरी रात में वह आकाश की ओर देखता हुआ चल रहा था कि अचानक उसका पैर फिसला और वह एक कुएँ में जा गिरा। कुआँ सूखा हुआ था और ज्यादा गहरा भी नहीं था।उसके अंदर से वह लोगों से मदद के लिए गुहार लगाने लगा, “बचाओ, बचाओ ! मैं कुएँ में गिर गया हूँ। कोई तो मुझे बाहर निकालो।” एक राहगीर उसकी आवाज सुनकर रुका।वह कुएँ के पास गया और उसमें झाँककर देखा तो वहाँ ज्योतिषी गिरा हुआ था। उसने ज्योतिषी से कहा,”अरे! ज्योतिषी महाराज,आप तो सब लोगों की ग्रह- दशा बताते हैं। फिर क्या कारण है कि आप अपना भविष्य नहीं देख पाए और चलते-चलते कुएँ में गिर पड़े?” यह कहकर वह हँसता हुआ आगे चला गया।शिक्षा: एक समय में एक ही काम करना चाहिए।
नीच का न्याय
एक जंगल के जिस वृक्ष पर मैं रहता था, उसके नीचे के तने में एक खोखल में किंजल नाम का एक चटक (तीतर) भी रहता था। एक दिन कपिजल अपने साथियों के साथ बहुत दूर के खेत में धान की नई-नई कोपलें खाने चला गया।बहुत रात बीतने पर भी जब वह वापस न लौटा तो मुझे चिंता होने लगी। इसी बीच शीघ्रगति नाम का एक खरगोश वहां आया और कपिंजल के खाली स्थान को देखकर उसमें घुस गया। दूसरे दिन कपिंजल अचानक वापस लौट आया।अपने खोखल में आने पर उसने देखा कि वहां एक खरगोश बैठा हुआ है उसने खरगोश से अपनी जगह खाली करने को कहा। खरगोश भी तीखे स्वभाव का या, दोला’यह घर अद तेरा नहीं हैं।वापी, कृप, तालाब और वृक्षों पर बने घरों का यही नियम है कि जो भी उनमें बसेरा कर ले, वह घर उसका हो जाता है। घर का स्वामित्व केवल मनुष्यों के लिए होता है। पक्षियों के लिए गृह-स्वामित्व का कोई विधान नहीं है।’उनकी बातचीत को एक जंगली बिल्ली सुन रही थी उसने सोचा-मैं ही। पंच बन जाऊं तो कितना अच्छा है, दोनों को मारकर खाने का अवसर मिल जाएगा” यही सोच, हाय में माला लेकर,सूर्य की ओर मुख करके वह नदी किनारे कुशासन बिछाकर, आंख मूंदकर बैठ गई और धर्म का उपदेश करने लगी। उसके उपदेशों को सुनकर खरगोश ने कहा-‘यह देखो। कोई तपस्वी बैठा है।क्यों न इसी तीतर बिल्ली को देखकर डर गया, दूर से ही बोला—’मुनिवर ! आप हमारे झगड़े का निबटारा कर दें। जिसका पक्ष धर्मविरुद्ध हो, उसे तुम खा लेना। यह सुनकर बिल्ली ने आंखें खोली और कहा- ‘राम-राम। ऐसा न कहो।मैंने हिंसा का मार्ग छोड़ दिया है। अतः मैं हिंसा नहीं करूंगी। हां, तुम्हारा निर्णय करना मुझे स्वीकार है। किंतु, मैं वृद्ध हूं, दूर से तुम्हारी बातें नहीं सुन सकती, पास आकर अपनी बात कहो।’बिल्ली की बात पर दोनों को विश्वास हो गया दोनों ने उसे पंच मान लिया और उसके निकट जा पहुंचे। उचित अवसर पाकर बिल्ली ने दोनों को ही दबोच लिया और मारकर खा गई।इसी को पंच बनाकर पूछ लें ?’ कौए की बात सुनकर सभी पक्षी उल्लू को राजमुकुट पहनाए बिना वहां से चले गए। केवल अभिषेक की प्रतीक्षा करता हुआ उल्लू, उसकी मित्र कृकालिका और कौआ वहीं रह गए।